इस नाम को किसी परिचय की आवश्यकता नही। यह नाम अपने आप में ही एक बहुत बड़ा व्यक्तिमतव है। पितृसतात्मकता में उभर कर आयी हुई एक साम्राज्ञी, अहिल्याबाई होलकर।
इस पुस्तक में उनके जीवनी का वर्णन किया गया है। उनके बचपन से लेकर अंतकाल तक उनके दृढ़निश्चय, आत्मविश्वास ऐवम समर्पण का उल्लेख किया गया है।
शादी के बाद उनके जीवन में क्या बदलाव आए। वे राज्य कारभार कैसे सीखी। उनके पति की मृत्यु के बाद उन्होंने अपना मन राज्य कारभार में कैसे लगाया। उनके जीवन में अनेक दुखद प्रसंग आए और कठिनाइयाँ भी। अपनो की मृत्यु और राज व्यवस्था में आने वाली विडंब परिस्थितियाँ कई बार उनको निराश कर देती। किंतु इन सबसे ऊपर उन्होंने प्रथम स्थान अपनी जिम्मदारियों को दिया। वे बिना हटे अपने राज्य के प्रजाजनो की सेवा में डटी रहीं। उनके इसी निश्चय का फलस्वरूप होल्कर साम्राज्य उन्नति पर रहा।
यह पुस्तक सिर्फ़ पढ़ने के लिए अच्छी नहीं अपितु नए युग के युवाओं, ख़ास कर युवतियों के लिए एक महत्वपूर्ण सिख देती है। किस प्रकार दृढ़निश्चय और संकल्प से किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना कर लक्ष्य को पाया जा सकता है। इसे पढ़ने मात्र से मन में उत्साह, आनंद, आत्मविश्वास और समर्पण की भावना उत्पन्न होती |